Mentor and Guide, Dev Samaj
श्रीमान निर्मल सिंह जी ढिल्लों, पूर्व सेक्रेटरी, देव समाज का जीवन सादगी, सरलता, हमदर्दी, श्रद्धा, वैज्ञानिक मनोवृत्ति और विकासवादी दृष्टि का मिश्रण था । जब आपका नौवीं कक्षा में प्रवेश हुआ तो देश का बंटवारा हो गया । चारों तरफ डर और सहम का वातावरण था । आस-पास मुसलमानों के गाँव थे, भयानक कत्लेआम की खबरें आ रही थी । आप अपने माता-पिता और बहन-भाइयों के साथ एक अँधेरी रात को अपने गाँव से बैलगाड़ी के द्वारा रिनाला खुर्द जिला मिंटगुमरी के (जो अब पाकिस्तान में है) रेलवे स्टेशन पर पहुँच गए और वहां से रेलगाड़ी के द्वारा अपने पुश्तैनी गाँव बंगा (जिला जालंधर) चले गए । दसवीं कक्षा के बाद आप रामगढ़िया कॉलेज फगवाड़ा में दाखिल हो गये और अपने इलाके के कम्युनिस्ट पार्टी के कुछ लोगों के संपर्क में आये । आप उनकी सादगी, कुर्बानी और वैज्ञानिक सोच, गरीबों के दुःख-दर्द के प्रति भावशीलता से इतने प्रभावित हुए कि आप कम्युनिस्ट पार्टी के मेंबर बन गए । काल मार्क्स के वर्ग रहित समाज निर्माण के दर्शन ने आप पर जादू का सा असर किया और आप अपने कॉलेज के विद्यार्थियों और गांवों के मजदूरों-किसानों के हित के लिए काम करने लगे । इसी दौरान एक विकासकारी घटना आपके जीवन में घटी, यह 15 मई 1955 की बात है । अपने एक मित्र के साथ दिल्ली जाते हुए आपकी देव समाज के एक महान कर्मचारी श्रीमान गुरुसेवक सिंह जी के साथ रेलगाड़ी के सफर के दौरान चंद मिनट बात हुई, इससे आपके जीवन में ऐसा मोड़ आया जिसे आप अपना नया जन्म मानते थे । पहली बार आपको अपनी योग्यता और क्षमता का बोध हुआ और भगवान देवात्मा का पावन जन्म महोत्सव जो दिल्ली में मनाया जा रहा था, आप उसमें शामिल हुए और महासभा में आपने अपना जीवन भेंट कर दिया । दूसरे दिन आप भागवान देवात्मा के सेवक और देव समाज के मेंबर बन गए तथा उस दिन के बाद आप सदा के लिए देव समाज के हो गए जिसे हायर लाइफ ट्रेनिंग अकेडमी कहते हैं । वहां रहकर आपने चार साल का कोर्स पास किया और देव समाज के उपकर्मचारी बन गये । आप बड़ी श्रद्धा और उत्साह से भगवान देवात्मा के मिशन में सेवाकारी होने लगे और देव समाज काउन्सिल के मेंबर भी बने । उन दिनों धर्म विकासालय के प्रिंसिपल श्रद्धेय श्रीमान ईश्वर सिंह जी थे, जिन्होंने साढ़े आठ वर्षों तक भगवान देवात्मा की ज़ाती सेवा की थी और वे उच्च आदर्शों के लिए जीने वाले इंसान थे । उनके चरणों में बैठकर आपने परम पूजनीय भगवान देवात्मा के देव जीवन और आत्मा के सम्बन्ध में विज्ञानमूलक सत्य शिक्षा को प्राप्त किया, जिसे आप अपने जीवन की सबसे बड़ी उपलब्धि मानते थे , चूँकि आपने दसवीं तक फ़ारसी और बी. ए. तक उर्दू पढ़ी थी इसलिए आपको देव समाज के साप्ताहिक उर्दू अखबार “सत्यदेव संवाद” का संपादक बनाया गया । उर्दू पढ़े-लिखे लोगों की संख्या कम होने पर इसे बंद कर दिया गया और इसकी जगह आप पंजाबी पत्रिका “हितकारी” के संपादक बन गए । बाद में आप देव समाज की हिंदी मासिक पत्रिका “जीवन पथ” के संपादक भी रहे । आपने हजारों लेख और बहुत सी पुस्तकें भी लिखीं। श्रीमान निर्मल सिंह जी ढिल्लों उच्च कोटि के वक्ता थे , आपके लेक्चरों और सभाओं को बड़े से बड़े विद्वान भी जब सुनते थे तो उत्साह और उच्च प्रेरणाएं लाभ करके धन्य-धन्य हो जाते थे । आपके सम्बन्ध में देव धर्म दर्शन के महान दार्शनिक प्रोफेसर एस. पी. कनल जी ने लिखा है कि – “लोग उनके लेक्चर सुनने के आकांक्षी रहते हैं और लेक्चर के दिन का बेसब्री से इंतज़ार करते हैं, उनके भाषण में आवाज़ की बुलंदी हैं, शब्दों में शक्ति है, विचारों में विशालता और बारीकी होती है | विषय के गंभीर होने पर भी वह बड़ी सुगमता के साथ संजीदगी और हास्य रसता को अपने विशेष ढंग से मिश्रित करके श्रोताओं का ध्यान अपने व्याख्यान पर जमाये रखते हैं । सत्यज्ञान उपार्जन के लिए दो आँखें चाहिए- वैज्ञानिक विधि और विकासवादी दृष्टि । इन दोनों दृष्टियों द्वारा देव धर्म के सिद्धान्त रचे गए हैं । श्रीमान निर्मल सिंह जी अपने भाषण में अपने विषय के विचारों को इन दृष्टियों द्वारा अध्ययन करके प्रस्तुत करते हैं इसलिए आप देव धर्म के विश्वास के योग्य तर्ज़मान हैं । ” आपकी रहनुमाई में देव समाज ने हर क्षेत्र में उन्नति की । इसका श्रेय आप अपने पूजनीय सतगुरु भगवान देवात्मा को देते थे जिनकी ज्योति और शक्ति के बिना आप उनके मिशन में सेवाकारी नहीं हो सकते थे और आप देव समाज मैनेजिंग काउन्सिल के सदस्यों के सहयोग, स्नेह और विश्वास को भी अपने लिए बहुत मूल्यवान मानते थे । परम श्रद्धेय श्रीमान निर्मल सिंह जी ढिल्लों की शख़्सियत बेमिसाल थी, आपने अपना सारा जीवन स्त्री शिक्षा, महिला सशक्तिकरण, वैज्ञानिक मनोवृत्ति तथा उच्च आदर्शों और सिद्धांतों को समर्पित कर दिया था। आप एक ऐसे युगपुरुष थे जिनकी मिसाल देव समाज के इतिहास में हमेशा दी जाएगी और आने वाली पीढ़ियां आपके दिखाए रास्ते पर चलकर अपना जीवन सार्थक करती रहेंगी ।
- Nirmal Singh Dhillon
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